Thursday 25 August 2016

मन सुधरेगा तो जीवन सुधरेगा


एक राजा के पास एक बकरा था। एक दिन राजा ने घोषणा की कि जो कोई भी इस बकरे को जंगल में चराकर तृप्त करेगा मैं उसको अपना  आधा राज्य दे दूंगा। किंतु बकरे का पेट पूरा भरा है या नहीं इसकी परीक्षा मैं स्वयं करूँगा।

घोषणा को सुनकर एक मनुष्य राजा के पास आकर बोला कि बकरा चराना कोई बड़ी बात नहीं है।

वह बकरे को लेकर जंगल में गया और सारे दिन उसे घास चराता रहा शाम तक उसने बकरे को खूब घास खिलाई और फिर सोचा की सारे दिन इसने इतनी घास खाई है, अब तो इसका पेट भर गया होगा तो अब इसको राजा के पास ले चलूँ।

बकरे के साथ वह राजा के पास गया। राजा ने थोड़ी सी हरी घास बकरे के सामने रखी तो बकरा उसे खाने लगा।

इस पर राजा ने उस मनुष्य से कहा की तुमने उसे पेट भर खिलाया ही नहीं वर्ना वह घास क्यों खाने लगता।

बहुत लोगों ने बकरे का पेट भरने का प्रयास किया, किंतु जैसे ही दरबार में उसके सामने घास डाली जाती तो वह फिर से खाने लगता।

एक विद्वान् ब्राह्मण ने सोचा इस घोषणा का कोई तो रहस्य है, तत्व है, मैं युक्ति से काम लूँगा वह बकरे को चराने के लिए ले गया। किन्तु जैसे ही बकरा घास खाने के लिए जाता तो वह उसे लकड़ी से मारता

सारे दिन में ऐसा कई बार हुआ अंत में बकरे ने सोचा की यदि मैं घास खाने का प्रयत्न करूँगा तो मार खानी पड़ेगी। शाम को वह ब्राह्मण बकरे को लेकर राजदरबार में लौटा। बकरे को तो उसने बिलकुल घास नहीं खिलाई थी।

फिर भी राजा से कहा मैंने इसको भरपेट खिलाया है। अत: यह अब बिलकुल घास नहीं खायेगा, लो कर लीजिये परीक्षा....

राजा ने घास डाली लेकिन उस बकरे ने उसे खाया तो क्या देखा और सूंघा तक नहीं....

क्योंकि बकरे के मन में यह बात बैठ गयी थी कि अगर घास खाऊंगा तो मार पड़ेगी....अत: उसने घास नहीं खाई....

मित्रों "यह बकरा हमारा मन ही है" जो दुनिया भर की सभी वस्तुओं को पाकर भी कभी तृप्त नही होता।

बकरे को घास चराने ले जाने वाला ब्राह्मण "आत्मा" है। राजा "परमात्मा" है।

मन को मारो नहीं... परंतु मन पर अंकुश अवश्य रखो.... मन सुधरेगा तो जीवन भी सुधरेगा।

अतः मन को विवेक रूपी लकड़ी से रोज पीटो, तभी यह नियंत्रण में रहेगा।


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